भारत जैसे ऊर्जा-गहन और तेजी से बढ़ते देश के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह पारंपरिक ईंधनों पर निर्भरता को घटाए और वैकल्पिक, स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को अपनाए। विशेष रूप से खनन और लॉजिस्टिक्स जैसे भारी उद्योगों में जहां डीजल ट्रकों का बड़ा उपयोग होता है, वहां हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने वाले ट्रक एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। इन ट्रकों से न केवल वायु और ध्वनि प्रदूषण में भारी कमी आएगी, बल्कि भारत के ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को भी मजबूती मिलेगी।
हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रक क्यों हैं समय की आवश्यकता?
पारंपरिक डीजल ट्रक भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कणीय प्रदूषक (PM) उत्सर्जित करते हैं। इससे न केवल पर्यावरण संकट गहराता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ती हैं। वहीं, हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रक जलवाष्प के अतिरिक्त कोई उत्सर्जन नहीं करते। 2070 तक भारत को नेट-जीरो कार्बन एमिशन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह बदलाव अनिवार्य है।
छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक शुरुआत
अडाणी एंटरप्राइजेज ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में भारत का पहला हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रक लॉन्च कर इस दिशा में ऐतिहासिक पहल की है। यह ट्रक खदानों से कोयला ढोने के काम में आएगा। तीन हाइड्रोजन टैंकों से लैस यह ट्रक एक बार फ्यूल भरने पर 200 किलोमीटर तक 40 टन माल ढोने में सक्षम है। इस ट्रक की खासियत यह है कि यह बिना धुआं और बिना शोर के चलता है, जो इसे पारंपरिक डीजल ट्रकों से कहीं अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाता है।
तकनीकी साझेदारी और आत्मनिर्भरता
इस ट्रक का निर्माण अशोक लेलैंड द्वारा किया गया है, जिसमें कनाडा की बैलार्ड पावर सिस्टम्स का फ्यूल सेल लगाया गया है और अडाणी न्यू इंडस्ट्रीज लिमिटेड इसके लिए हाइड्रोजन फ्यूलिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रही है। यह पूरी प्रक्रिया "मेक इन इंडिया" अभियान को बढ़ावा देती है और भारत को वैश्विक स्तर पर हाइड्रोजन लॉजिस्टिक्स में अग्रणी बना सकती है।
पर्यावरण और आर्थिक लाभ
भारत हर साल लगभग 260 अरब डॉलर ऊर्जा आयात पर खर्च करता है, जिसमें डीजल और अन्य जीवाश्म ईंधन बड़ी भूमिका निभाते हैं। हाइड्रोजन ट्रकों के उपयोग से यह आयात निर्भरता कम की जा सकती है। साथ ही, इनसे वायु और ध्वनि प्रदूषण में भारी गिरावट आएगी। हाइड्रोजन को रिन्युएबल स्रोतों से बनाया जा सकता है, जिससे यह एक स्थायी विकल्प बनता है।
खनन क्षेत्र में संभावनाएं
भारत हर साल लगभग 900 मिलियन टन कोयला उत्पादन करता है। इसकी ढुलाई के लिए हजारों भारी वाहन उपयोग में आते हैं। हाइड्रोजन आधारित ट्रकों की तैनाती इस पूरे खनन लॉजिस्टिक्स को ग्रीन और कम-कार्बन बना सकती है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य जहां 100 से अधिक कोयला ब्लॉक जल्द उत्पादन शुरू करने वाले हैं, वहां यह पहल विशेष रूप से महत्वपूर्ण बन जाती है।
भारत का वैश्विक नेतृत्व
जहां विकसित देश अभी हाइड्रोजन ट्रकों का उपयोग सीमित रूप से कर रहे हैं, वहीं भारत खनन जैसे चुनौतीपूर्ण सेक्टर में इस तकनीक को अपनाने वाला पहला देश बन गया है। यह भारत को न केवल जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में अग्रणी बनाएगा, बल्कि उसे स्वच्छ प्रौद्योगिकी का वैश्विक नेतृत्वकर्ता भी बना सकता है।
निष्कर्ष
हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रक भारत के लिए सिर्फ एक तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि पर्यावरणीय सुरक्षा, ऊर्जा आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में एक सशक्त कदम है। छत्तीसगढ़ से शुरू हुई यह क्रांति आने वाले वर्षों में पूरे देश के ट्रांसपोर्ट और खनन सिस्टम को बदलने की क्षमता रखती है।