देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर के इलाकों में वायु प्रदूषण एक ऐसा संकट बन गया है, जो तमाम सरकारी प्रयासों और पाबंदियों के बावजूद कम होने का नाम नहीं ले रहा है। शुक्रवार को दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 387 दर्ज किया गया, जो 'बेहद खराब' श्रेणी में आता है। गुरुवार को यह आंकड़ा 373 था, जिससे स्पष्ट है कि स्थिति सुधरने के बजाय और अधिक गंभीर होती जा रही है।
पाबंदियों का दौर और 'नो पीयूसी, नो फ्यूल' अभियान
प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए दिल्ली सरकार और प्रशासन ने कड़े कदम उठाए हैं। 18 दिसंबर (गुरुवार) से दिल्ली में वाहनों के प्रवेश को लेकर सख्त नियम लागू किए गए हैं:
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BS6 वाहनों को ही अनुमति: दिल्ली की सीमाओं पर अब केवल BS6 मानक वाले वाहनों को ही प्रवेश दिया जा रहा है। पुराने और अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है।
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नो पीयूसी, नो फ्यूल: प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (PUC) न होने पर पेट्रोल पंपों द्वारा ईंधन देने से मना किया जा रहा है। इसका उद्देश्य वाहन मालिकों को अपने वाहनों का नियमित प्रदूषण चेक कराने के लिए मजबूर करना है।
सख्ती का असर: हजारों चालान और वाहनों की वापसी
प्रशासन ने नियमों को लागू करने के लिए दिल्ली के बॉर्डर पॉइंट्स पर भारी पुलिस बल और परिवहन विभाग की टीमें तैनात की हैं। अभियान के पहले ही दिन यानी गुरुवार को हुई कार्रवाई के आंकड़े चौंकाने वाले हैं:
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भारी चालान: पहले 24 घंटों में नियमों का उल्लंघन करने वाले 3,746 से अधिक वाहनों का चालान काटा गया।
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वाहनों की घर वापसी: लगभग 570 ऐसे वाहनों को दिल्ली की सीमाओं से वापस भेज दिया गया, जो निर्धारित मानकों (जैसे BS6) को पूरा नहीं कर रहे थे।
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सघन चेकिंग: ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग की संयुक्त टीमों ने दिल्ली में प्रवेश करने वाले लगभग 5,000 वाहनों की गहन जांच की।
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ट्रकों का डायवर्जन: प्रदूषण कम करने के लिए गैर-जरूरी सामान लेकर आ रहे 217 ट्रकों का रूट डायवर्ट कर दिया गया ताकि शहर के भीतर बोझ कम हो सके।
हवा में सुधार क्यों नहीं?
इतनी पाबंदियों और चालानी कार्रवाई के बाद भी AQI का स्तर 400 के करीब बना रहना चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
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स्थानीय कारक: निर्माण कार्य, सड़क की धूल और कचरा जलाना अभी भी पूरी तरह नियंत्रित नहीं है।
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मौसम की मार: हवा की गति कम होने और तापमान गिरने के कारण प्रदूषक तत्व (Pollutants) जमीन के करीब जम जाते हैं, जिससे स्मॉग की मोटी परत बनी रहती है।
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पड़ोसी राज्यों का प्रभाव: पराली जलाने की घटनाएं कम होने के बावजूद, औद्योगिक धुंआ और क्षेत्रीय प्रदूषण दिल्ली की हवा को लगातार जहरीला बना रहा है।