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जनगणना में देरी पर गृह मंत्रालय ने दी सफाई, कांग्रेस ने उठाया था सवाल

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Posted On:Friday, June 6, 2025

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जनगणना सिर्फ जनसंख्या की गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक नीतियों की नींव होती है। ऐसे में 2021 में प्रस्तावित जनगणना की प्रक्रिया में तीन साल से अधिक की देरी पर अब सियासत गरमा गई है। विपक्ष खासकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर इस मुद्दे को लेकर तीखे सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का कहना है कि जनगणना में देरी से न केवल योजनाएं प्रभावित हो रही हैं, बल्कि सामाजिक न्याय से भी खिलवाड़ हो रहा है।

कांग्रेस ने उठाए तीखे सवाल

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि 2021 की जनगणना में अब तक 23 महीनों से अधिक की देरी हो चुकी है और सरकार इसकी कोई ठोस वजह नहीं बता रही है। उन्होंने सवाल किया कि क्या इस बार की जनगणना में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जातिगत गणना भी शामिल की जाएगी?

कांग्रेस नेता अजय माकन ने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार अब भी 2011 के आंकड़ों के आधार पर कल्याणकारी योजनाएं चला रही है, जबकि देश की जनसंख्या में करीब 25% की वृद्धि हो चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कार्यक्रमों के लाभ से लाखों लोग वंचित रह गए हैं।

गृह मंत्रालय का जवाब

इस पूरे मामले पर गृह मंत्रालय ने अपनी सफाई पेश की। मंत्रालय ने कहा कि जनगणना की प्रक्रिया 2020 में शुरू होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते तैयारियां बाधित हो गईं। लॉकडाउन, संक्रमण, और स्वास्थ्य संबंधी संकट ने जनगणना जैसे विशाल अभियान को असंभव बना दिया।

अब मंत्रालय ने ऐलान किया है कि 16 जून 2025 से देशभर में जनगणना की प्रक्रिया शुरू होगी, जो 1 मार्च 2027 तक चलेगी। इसके लिए आधिकारिक अधिसूचना जल्द ही राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी। इसके अलावा, रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त मृत्युंजय कुमार नारायण का कार्यकाल भी अगस्त 2026 तक बढ़ाया गया है, जिससे जनगणना कार्य को निरंतरता मिले।

डिजिटल होगी 2025 की जनगणना

इस बार जनगणना को पूरी तरह से डिजिटल रूप में आयोजित किया जाएगा। मंत्रालय के अनुसार, 2025 की जनगणना भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसमें आंकड़े एकत्र करने, विश्लेषण करने और नीति निर्माण में आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाएगा। यह न केवल पारदर्शिता को बढ़ाएगा, बल्कि समय और संसाधनों की भी बचत करेगा।

इस डिजिटल जनगणना में जनसांख्यिकीय, सामाजिक, आर्थिक, धर्म, वर्ग और शिक्षा से जुड़े प्रश्नों को शामिल किया जा सकता है। हालांकि जातिगत गणना को लेकर अब भी संशय बना हुआ है। गृह मंत्रालय का कहना है कि जातिगत गणना पर निर्णय सभी दलों और पक्षों से परामर्श के बाद ही लिया जाएगा।

राजनीतिक बहस का नया मुद्दा

जातिगत जनगणना पहले भी एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा रहा है। बिहार, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही अपनी स्तर पर जातिगत सर्वे शुरू कर दिए हैं। ऐसे में अब केंद्र पर दबाव बढ़ रहा है कि वह भी इस दिशा में स्पष्ट नीति बनाए। कई विपक्षी दलों का मानना है कि ओबीसी की सही संख्या जाने बिना सामाजिक न्याय की योजनाएं अधूरी रहेंगी।

योजनाएं और बजट प्रभावित

कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा जनगणना के लिए आवंटित बजट का बड़ा हिस्सा उपयोग नहीं हो पाया। 2022 में जनगणना बजट का 66%, 2023 में 85% और 2024 में 58% हिस्सा खर्च ही नहीं किया गया। यह सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है।

सरकार का कहना है कि जनगणना एक अत्यंत जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है। इसमें राज्यों के प्रशासन, स्थानीय निकायों, प्रशिक्षित स्टाफ और टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर की बड़ी भूमिका होती है। कोविड के बाद इन सभी मोर्चों पर काम शुरू हो चुका है और 2025 से जनगणना पूरी गति से आगे बढ़ेगी।

निष्कर्ष

जनगणना की देरी पर सरकार और विपक्ष आमने-सामने हैं। जहां एक ओर कांग्रेस सरकार को सामाजिक आंकड़ों की अनदेखी का दोषी ठहरा रही है, वहीं केंद्र कोविड-19 के प्रभाव का हवाला देकर तैयारियों को अंतिम रूप देने की बात कर रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 की जनगणना में किस तरह के सवाल शामिल किए जाते हैं और क्या जातिगत आंकड़े भी इसका हिस्सा बनते हैं।

यह मुद्दा सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, नीतियों की प्रभावशीलता और राजनीतिक गणित से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए इसके हर पहलू पर देश की नजर बनी हुई है।


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