पश्चिम बंगाल की राजनीति में इन दिनों हुमायूं कबीर का नाम चर्चा का केंद्र बना हुआ है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) से निष्कासित होने के बाद कबीर न केवल अपनी नई राजनीतिक पारी को लेकर सुर्खियों में हैं, बल्कि उनके और उनके परिवार के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई ने इस विवाद को और गहरा दिया है।
हुमायूं कबीर बनाम प्रशासन: बंगाल की राजनीति में नया उबाल
मुर्शिदाबाद के कद्दावर नेता हुमायूं कबीर और ममता बनर्जी की सरकार के बीच तनाव अब चरम पर पहुंच गया है। हाल ही में कबीर द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव में 182 सीटों पर प्रत्याशी उतारने के ऐलान के ठीक बाद उनके बेटे को पुलिस द्वारा हिरासत में लिया जाना, बंगाल की राजनीति में बड़े उलटफेर का संकेत दे रहा है।
1. पीएसओ विवाद और बेटे की हिरासत
सोमवार को हुमायूं कबीर के बेटे को पुलिस ने करीब 8 घंटे तक हिरासत में रखा। इस घटना का मूल कारण विधायक के निजी सुरक्षा अधिकारी (PSO) जुम्मा खान के साथ हुआ विवाद बताया जा रहा है।
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कबीर का पक्ष: विधायक के अनुसार, यह एक मामूली घटना थी। पीएसओ बिना अनुमति दफ्तर में घुस आया और छुट्टी की जिद करने लगा। उसे बाहर जाने को कहा गया, जिसके बाद उसने शिकायत दर्ज करा दी।
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कानूनी रुख: कबीर ने इस पर एक सधे हुए राजनेता की तरह प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कानून अपना काम करेगा और यदि उनके बेटे की गलती होगी, तो वह कानूनी प्रक्रिया का सामना करेंगे।
2. 'जन उन्नयन पार्टी' और नई चुनौती
TMC से निकाले जाने के बाद हुमायूं कबीर ने 'जन उन्नयन पार्टी' का गठन किया है। मुर्शिदाबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में उनकी मजबूत पकड़ है। हाल ही में बाबरी मस्जिद की शैली में एक मस्जिद की आधारशिला रखकर उन्होंने अपनी राजनीतिक दिशा स्पष्ट कर दी है। कबीर अब बंगाल की उन सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जहाँ अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
3. पुलिस पर 'राजनीतिक उत्पीड़न' का आरोप
हुमायूं कबीर ने सीधे तौर पर ममता सरकार और पुलिस पर आरोप लगाया है कि उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है।
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आवास की घेराबंदी: कबीर का दावा है कि शक्तिपुर स्थित उनके आवास को पुलिस ने घेर लिया है। उन्होंने इसे एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि का अपमान और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया।
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TMC का हस्तक्षेप: कबीर का मानना है कि उनकी नई पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर तृणमूल कांग्रेस पुलिस का इस्तेमाल उन्हें निशाना बनाने के लिए कर रही है।
4. विरोध का बिगुल: 1 जनवरी को घेराव
विधायक ने साफ कर दिया है कि वे इन कार्रवाइयों से पीछे हटने वाले नहीं हैं। उन्होंने ऐलान किया है कि:
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SP ऑफिस का घेराव: 1 जनवरी को वह अपने समर्थकों के साथ मुर्शिदाबाद में पुलिस अधीक्षक (SP) कार्यालय का घेराव करेंगे।
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जवाबदेही की मांग: वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से अपने बेटे की हिरासत और घर की घेराबंदी पर स्पष्टीकरण मांगेंगे।
निष्कर्ष
हुमायूं कबीर की यह बगावत आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए एक नया मोर्चा खोल सकती है। यदि कबीर 182 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं, तो यह सीधे तौर पर TMC के वोट बैंक में सेंधमारी होगी। बेटे की हिरासत और पुलिसिया कार्रवाई ने उन्हें 'विक्टिम कार्ड' खेलने और अपने समर्थकों को एकजुट करने का मौका दे दिया है। 2026 की शुरुआत बंगाल की राजनीति के लिए बेहद हंगामेदार रहने वाली है।