भारत ने जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब करने का वैश्विक अभियान शुरू किया, तो यह केवल सैन्य या खुफिया प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि एक रणनीतिक कूटनीतिक आक्रमण भी था। भारत के सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल इस अभियान के तहत दुनिया के प्रमुख देशों – अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूके – में भेजे गए ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि पाकिस्तान में पलने वाले आतंकवादी संगठन विश्व शांति के लिए गंभीर खतरा हैं।
भारत की इस कूटनीतिक सक्रियता को देखते हुए पाकिस्तान ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप एक प्रतिनिधिमंडल अमेरिका भेजा, जिसकी अगुवाई पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने की। उनका मकसद था – अमेरिका की नजरों में पाकिस्तान को आतंक के खिलाफ लड़ने वाला सहयोगी देश साबित करना। लेकिन यह प्रयास पाकिस्तान के लिए उल्टा पड़ गया।
अमेरिकी सांसदों ने पाकिस्तान को दिखाया आईना
बिलावल भुट्टो की अगुवाई में जब पाकिस्तानी डेलिगेशन वाशिंगटन पहुंचा और अमेरिकी सांसदों से मिला, तो उन्हें अपेक्षित समर्थन तो नहीं मिला, बल्कि कड़ी फटकार सुननी पड़ी। इस दौरान डेमोक्रेटिक पार्टी से सांसद ब्रैड शेरमैन ने जो बातें कहीं, वह न केवल भारत की कूटनीतिक सफलता का प्रमाण हैं, बल्कि पाकिस्तान की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर गहरा नुकसान पहुंचाने वाली हैं।
शेरमैन ने स्पष्ट शब्दों में कहा –
“पाकिस्तान को जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ निर्णायक और कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि 2002 में इस आतंकी संगठन ने वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डैनियल पर्ल की बेरहमी से हत्या की थी। इस घटना के पीछे ओमर सईद शेख का नाम सामने आया था, जो बाद में पाकिस्तान की जेलों में VIP ट्रीटमेंट पाता रहा।
जैश-ए-मोहम्मद पर वैश्विक दृष्टिकोण
ब्रैड शेरमैन ने यह भी याद दिलाया कि जैश-ए-मोहम्मद न केवल संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकी संगठन है, बल्कि वह 2019 के पुलवामा हमले का भी जिम्मेदार है, जिसमें भारत के 40 जवान शहीद हुए थे।
उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान वैश्विक सहयोग चाहता है तो उसे दिखावटी प्रतिबंधों और ढकोसलों से ऊपर उठकर आतंकवादियों के नेटवर्क को तोड़ना होगा।
अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर भी फटकार
सिर्फ आतंकवाद ही नहीं, शेरमैन ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार को भी मुद्दा बनाया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के नागरिकों को बिना डर के अपनी धार्मिक आस्था का पालन करने और लोकतांत्रिक अधिकारों में भाग लेने की पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
यह टिप्पणी सीधी थी, जिसमें हिंदू, सिख, ईसाई और अहमदिया समुदायों पर पाकिस्तान में हो रहे अत्याचारों की तरफ संकेत था।
भारत की रणनीति काम कर गई?
भारत के लिए यह घटनाक्रम कूटनीतिक दृष्टि से एक बड़ी जीत मानी जा रही है। जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत 7 प्रतिनिधिमंडल भेजे थे, तो उसका प्रमुख उद्देश्य यही था – दुनिया को दिखाना कि पाकिस्तान न केवल आतंकवाद का पालक है, बल्कि वह इससे इनकार करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह भी करता है।
भारत की इस रणनीति का ही असर था कि पाकिस्तान जब अपनी “छवि सुधारने” निकला, तो उसे अमेरिकी सांसदों से जवाबदेही और शर्मिंदगी ही मिली।
पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश
बिलावल भुट्टो के डेलिगेशन के अमेरिका दौरे का नतीजा पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी जैसा रहा।
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अब जुमले और बयानबाज़ी नहीं चलेंगे।
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आतंकी संगठनों को पनाह देना बंद करो।
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अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बंद करो।
यह अमेरिका से पाकिस्तान के लिए खुला संदेश था, जो भारत के पक्ष को और मजबूत करता है।
निष्कर्ष: भारत की कूटनीतिक चाल कारगर, पाकिस्तान की साख पर सवाल
जहां भारत ने पहलगाम हमले के बाद आतंकी नेटवर्क के खिलाफ एक संगठित अंतरराष्ट्रीय अभियान छेड़ा, वहीं पाकिस्तान अपनी छवि सुधारने के चक्कर में और अधिक बेहद कमजोर स्थिति में आ गया। ब्रैड शेरमैन जैसे प्रभावशाली सांसद का कड़ा रुख यह दर्शाता है कि भारत की बात अब वैश्विक स्तर पर गंभीरता से सुनी जा रही है, और पाकिस्तान को अब सिर्फ शब्द नहीं, ठोस कार्रवाई करनी होगी।
ऑपरेशन सिंदूर के इस पहलू ने साफ कर दिया है कि अब आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भी एकजुट हो रही है – और पाकिस्तान की “डबल गेम” अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाली