अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चल रहे टैरिफ युद्ध के बीच एक नया मोड़ देखने को मिला है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने हाल ही में चीन पर 245 प्रतिशत तक टैरिफ लगा दिया था, अब चीन के साथ व्यापार समझौते को लेकर सकारात्मक रुख दिखा रहे हैं। ट्रंप ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि उन्हें भरोसा है कि अमेरिका और चीन के बीच एक "बहुत अच्छा" व्यापार समझौता हो सकता है।
क्या बोले डोनाल्ड ट्रंप?
अमेरिकी न्यूज़ वेबसाइट द हिल की रिपोर्ट के मुताबिक, व्हाइट हाउस में इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के साथ मुलाकात के दौरान ट्रंप ने कहा, “हम चीन के साथ एक डील करने जा रहे हैं। मुझे लगता है कि हम एक बहुत अच्छी डील करने जा रहे हैं।” ट्रंप ने यह भी कहा कि उन्हें यूरोप या किसी अन्य देश के साथ डील करने में कोई जल्दबाजी नहीं है, लेकिन विश्वास है कि एक अच्छा समझौता जरूर होगा।
इस बातचीत के दौरान ट्रंप ने यूरोपीय संघ (EU) के साथ भी 90 दिनों की टैरिफ रोक के समाप्त होने से पहले व्यापार समझौता होने की उम्मीद जताई।
मेलोनी का जवाब
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने इस मौके पर कहा कि वह पश्चिम को फिर से “महान” बनाना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि अटलांटिक के दोनों किनारों के बीच चाहे जितनी भी समस्याएं हों, अब वक्त आ गया है कि सब मिलकर बैठें और हल निकालें। मेलोनी ने ट्रंप को भविष्य में रोम आने का निमंत्रण भी दिया, जिसे ट्रंप ने स्वीकार कर लिया।
अमेरिका-चीन टैरिफ वॉर की पृष्ठभूमि
व्हाइट हाउस की ओर से जारी फैक्ट शीट के अनुसार, अमेरिका ने हाल ही में चीन के उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर 245 प्रतिशत तक कर दिया है। इससे पहले भी 145 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया गया था। चीन ने इन कार्रवाइयों के जवाब में अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर 125 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया हुआ है।
चीन की प्रतिक्रिया
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि अमेरिका की ओर से शुरू किए गए इस टैरिफ युद्ध के जवाब में बीजिंग ने सिर्फ अपने वैध अधिकारों की रक्षा की है। उन्होंने कहा, “हमने बार-बार अमेरिका को अपनी गंभीर स्थिति बताई है। टैरिफ युद्धों में कोई विजेता नहीं होता, लेकिन चीन न तो इनसे डरता है और न ही इन्हें लड़ना चाहता है। हम सहयोग के लिए तैयार हैं।”
लिन जियान ने यह भी कहा कि अमेरिका को अपने टैरिफ के ‘स्पेसिफिक आंकड़ों’ के बारे में खुद ही बताना चाहिए।
निष्कर्ष
ट्रंप का बदला हुआ रुख संकेत देता है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अब टकराव की बजाय सहयोग की दिशा में बढ़ सकती हैं। हालांकि, यह भी साफ है कि दोनों देशों के बीच बनी खाई इतनी जल्दी पाटी नहीं जा सकती। आने वाले हफ्ते यह तय करेंगे कि ये बातचीत किसी ठोस समझौते में बदलती है या नहीं।