सराडा
गिद्ध जो प्रकृति में स्वच्छा का संदेश देते हैं ये मृत जानवरो को खाकर प्रकृति की सफाई करते हैं,लेकिन पिछले 20 वर्षो से इनकी संख्या तेजी से घटी हैं।
प्रकृति और पंछी मित्र हितेष श्रीमाल ने बताया की शनिवार को रेला घाटी जयसमंद रोड के पास की पहाड़ियों से उड़ते एक बड़े झुंड का दिखना एक सुखद और आनंद का पल रहा हैं,कई वर्षो के बाद इस क्षेत्र में गिद्ध दिखे हैं।
बचपन में देखते थे कि जहां भी कोई मरा जानवर पड़ा होता था पता नहीं कहाँ से 8-10 गिद्ध उतर आते थे और कुछ ही समय में कंकाल को छोड़ कर सब साफ कर देते थे।इस तरह प्रकृति ने पर्यावरण को साफ रखने का इंतज़ाम किया हुआ था।अब आदमी के दिमाग ने जैसे जैसे उन्नति की प्रकृति का विधान बिगड़ता चला गया।
जिन मरे जानवरों का मांस खा कर गिद्ध जीवित रहते थे उन जानवरों के इलाज के लिए आदमी ने जो दवाएं खिलाईं वो मृत पशुओं के शरीर से गिद्ध के पेट में पहुंच गई और गिद्धों का विनाश शुरू हो गया।
भारतीय गिद्ध पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो नई दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं।यह मध्य और पश्चिमी से लेकर दक्षिणी भारत तक पाया जाता है।प्रायः यह जाति खड़ी चट्टानों के श्रंग में अपना घोंसला बनाती है,परन्तु राजस्थान में यह अपना घोंसला पेड़ों पर बनाते हुये भी पाये गये हैं।अन्य गिद्धों की भांति यह भी अपमार्जक या मुर्दाख़ोर होता है और यह ऊँची उड़ान भरकर इंसानी आबादी के नज़दीक या जंगलों में मुर्दा पशु को ढूंढ लेते हैं और उनका आहार करते हैं।इनके चक्षु बहुत तीक्ष्ण होते हैं और काफ़ी ऊँचाई से यह अपना आहार ढूंढ लेते हैं।यह प्रायःसमूह में रहते हैं।
भारतीय गिद्ध का सर गंजा होता है,उसके पंख बहुत चौड़े होते हैं तथा पूँछ के पर छोटे होते हैं।