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रात के सन्नाटे में देर तक बंदूकों की ठांय-ठांय और तलवारों की टन्न-टन्न की आवाज सन्नाटे को चीरती रही

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Posted On:Monday, March 21, 2022

उदयपुर

उदयपुर जिले के बर्ड विलेज नाम से प्रख्यात मेनार गांव का जहां शनिवार रात को जमरा बीज के मौके पर बारूद की होली और तलवारों से जबरी गैर खेली गई।इस दौरान बंदूकों-तोपों और पटाखे फोड़े गए तो तलवारें चलाई गईं।मेवाड़ में होली के बाद आने वाली चैत्र कृष्ण द्वितीय को जमरा बीज कहा जाता है।इसे उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।पूरा गांव किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता है।इस मौके पर गांव के लोग तलवार से गैर नृत्य करते हैं।
गैर नृत्य से पूर्व ओंकारेश्वर चौराहे पर जाजम बिछा कर अमल कसुंबे की रस्म अदा की गई।शाम को मशालचियों की अगुवाई में सफेद धोती-कुर्ता और कसूमल पाग पहने लोगों के पांच दल पांच रास्तों से चारभुजा मंदिर के सामने चौराहा पर पहुंचे।
चौराहा पर पटाखों के धमाकों के साथ बंदूकें गरजती रहीं।रात 10:00 बजे बाद सभी लोग अलग-अलग रास्तों से मशालें,बंदूकें और तलवारों से लैस थे। बंदूक दागते हुए सेना के आक्रमण किए जाने के रूप में ओंकारेश्वर चौराहे पहुंचे जहां लोगों ने बंदूक व तोप के गोले दागे।
इसके बाद जैन समुदाय ने अबीर गुलाल से लोगों का स्वागत किया। महिलाएं सिर पर पानी का लोटा लिए एवं पुरुष आतिशबाजी करते हुए बोचरी माता की घाटी गए।जहां गांव के शौर्य और वीरता के इतिहास का वाचन किया गया।इस दौरान गांव की महिलाएं और युवतियां थम्ब चौक पर फेरावतों की कड़ी सुरक्षा में मुख्य होली को शीतल करने की रस्म अदा की। इसके बाद सभी लोग ओंकारेश्वर चौराहा आए।यहां लोगों ने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में लकड़ी लेकर तलवारों की जबरी गैर खेली।

*ऐसे शुरू हुई परंपरा*
 
मेनार मूलतया मेंनारिया ब्राह्मणों का गांव है।कहा जाता है कि एक बार इस गांव के लोगों ने मुगल सेना को हराया था।तलवारों को गैर नृत्य मुगल आक्रमणकारियों पर स्थानीय वीरों की विजय की खुशी में जमरा बीज चैत्र कृष्ण द्वितीया पर्व पर किया जाता है। ये लोग बांकिये और ढोल की लय पर एक हाथ में तलवार और दूसरे में लाठी लेकर गैर खेलते हैं।

*इतिहास*

इस पारंपरिक होली का इतिहास मेनारिया ब्राह्मणों के मुग़ल सेना से विजियी युद्ध से जुड़ा है,कहते है कि मुगलो ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण के बाद मेवाड़ पर हमला करने की कोशिश की थी,तभी मेनार के मेनारिया ब्राहमणों ने को बड़ी वीरतापूर्ण मुग़ल सेना को न सिर्फ रोका बल्कि पराजित भी किया।इस गौरवशाली विजय से प्रसन्न मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह प्रथम ने सम्मानपूर्वक 17 वें उमराव, क्षत्रिय ब्राह्मण की उपाधी दी और कुछ ख़ास चीज़े मेनारिया समाज को दी जैसे,एक लाल रंग की जाजम,भाला,एक बांकिया और एक रण बांकुर ढोल दिया।


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