भारत के साथ तनावों में उलझे पाकिस्तान को अब घरेलू मोर्चे पर एक बड़ा झटका लगा है। बलूचिस्तान के बाद अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी स्वतंत्रता की मांग तेज़ हो गई है। वहां के राष्ट्रवादी संगठन 'जय सिंध फ्रीडम मूवमेंट' (JSFM) ने हाल ही में शांतिपूर्ण लेकिन तीव्र विरोध प्रदर्शन करते हुए ‘सिंधुदेश’ की मांग को खुलेआम उठाया। इस विरोध में लापता राष्ट्रवादियों की रिहाई, मानवाधिकार उल्लंघनों के विरुद्ध कार्रवाई, और सिंध की आज़ादी की मांग प्रमुखता से रखी गई।
सिंध में क्या हो रहा है?
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सिंध प्रांत में 'जय सिंध फ्रीडम मूवमेंट' के नेतृत्व में स्थानीय नागरिकों ने शांति पूर्ण धरना दिया।
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आंदोलनकारियों ने पाकिस्तान सरकार से मांग की कि लापता सिंधी राष्ट्रवादियों — सोहेल, जुबैर और अमर आज़ादी — को जल्द रिहा किया जाए।
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उनका कहना है कि इन लोगों को अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है, और उन्हें जेलों में मानवाधिकारों का हनन झेलना पड़ रहा है।
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प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे जेलों के मुख्य गेट को बंद कर देंगे।
पाकिस्तानी सेना के काफिले को रोका गया
विरोध प्रदर्शनों ने और अधिक आक्रामक रूप तब ले लिया जब JSFM के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तानी सेना के एक काफिले को रोक दिया। यह सेना का वही काफिला था जो भारत से तनाव खत्म होने के बाद बॉर्डर से लौट रहा था। प्रदर्शनकारियों ने काफिले को घेर लिया और "अब बनेगा सिंधुदेश", "पाकिस्तानी सेना वापस जाओ", और "कल बना था बांग्लादेश, अब बनेगा सिंधुदेश" जैसे नारे लगाए।
यह घटना एक प्रतीक है कि पाकिस्तान के भीतर संघीय विफलता और प्रांतों में बढ़ती असंतोष किस हद तक गहराता जा रहा है।
क्या कह रहे हैं प्रदर्शनकारी?
प्रदर्शनकारियों ने कहा:
“हमारा आंदोलन लोगों की आजादी, संविधानिक अधिकार, और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए है। अगर हमें दबाया गया तो हम पूरे सिंध में जेलों के सामने प्रदर्शन करेंगे, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की पोल खोलेंगे।”
उनका यह भी कहना है कि जो राष्ट्रवादी गायब कर दिए गए हैं, वे जबरन उठाए गए नागरिक हैं, जिन्हें गुप्त जेलों में टॉर्चर किया जा रहा है। यह पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और सेना की सदियों पुरानी रणनीति है — जो अब जनता के खिलाफ जा रही है।
बलूचिस्तान की तर्ज पर अब सिंध भी
बलूचिस्तान में लंबे समय से स्वतंत्रता की मांग उठती रही है और अब यही लहर सिंध में भी बहने लगी है। ‘सिंधुदेश’ की मांग अब केवल विचारधारा नहीं रह गई है, बल्कि वह जनांदोलन का रूप ले रही है। यह पाकिस्तान के लिए संकट का स्पष्ट संकेत है।
विश्लेषकों का मानना है कि अगर पाकिस्तान ने जल्द ही सिंध और बलूचिस्तान में दमनकारी नीतियों को नहीं रोका, तो वहां भी 1971 जैसा परिदृश्य दोहराया जा सकता है, जब बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ था।
निष्कर्ष: बिखरता हुआ पाकिस्तान?
पाकिस्तान इस समय कूटनीतिक, आंतरिक और आर्थिक संकटों से जूझ रहा है। ऊपर से बलूचिस्तान और अब सिंध में आजादी की मांग उसकी एकता और अखंडता पर बड़ा सवालिया निशान लगा रही है।
सवाल उठता है — क्या पाकिस्तान में एक और बांग्लादेश बनने जा रहा है?
क्या सिंध अब वाकई 'सिंधुदेश' की ओर बढ़ रहा है?
यदि पाकिस्तान ने अपने ही लोगों की आवाज़ को दबाना बंद नहीं किया, तो जल्द ही इतिहास खुद को दोहरा सकता है।