भारत और अमेरिका के बीच चल रहे टैरिफ विवाद के बीच एक और महत्वपूर्ण और गंभीर विवाद सामने आया है। चीन ने अमेरिका और रूस के साथ परमाणु अप्रसार पर त्रिपक्षीय वार्ता से साफ इंकार कर दिया है। चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अमेरिका और रूस के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता में शामिल नहीं होगा। इस कदम से अमेरिका की कूटनीतिक रणनीति को बड़ा झटका लगा है और वैश्विक परमाणु नियंत्रण वार्ता की संभावनाएं धूमिल हो गई हैं।
चीन ने त्रिपक्षीय वार्ता का किया विरोध
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि अमेरिका और रूस के साथ त्रिपक्षीय वार्ता में चीन का हिस्सा बनना न तो व्यावहारिक है और न ही तर्कसंगत। उनका तर्क था कि तीनों देशों की परमाणु क्षमताओं में बड़ा अंतर है, इसलिए एक समान मंच पर वार्ता करना उचित नहीं होगा। चीन का यह रुख इस बात को दर्शाता है कि वह अमेरिका और रूस के साथ परमाणु हथियारों के नियंत्रण को लेकर किसी भी नए समझौते के लिए तैयार नहीं है।
1968 की परमाणु अप्रसार संधि और इसकी महत्ता
अमेरिका, चीन और रूस के बीच परमाणु अप्रसार संधि 1968 में हुई थी। इस संधि का उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, उनके निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करना था। इस संधि के तहत हर पांच साल में तीनों देशों की समीक्षा बैठक होती है, जिसमें वर्तमान सुरक्षा चुनौतियों और हथियार नियंत्रण के मुद्दों पर चर्चा होती है। 2025 में होने वाली यह समीक्षा बैठक अब अनिश्चितकाल के लिए टाल दी गई है, क्योंकि चीन ने इस पर अमल करने से साफ मना कर दिया है।
तनाव के कारण और वर्तमान स्थिति
पिछले कुछ वर्षों में रूस और अमेरिका के बीच भी तनाव की स्थिति बनी हुई है। अगस्त 2025 में रूस ने 1987 की इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज (INF) संधि से अलग होने की घोषणा की। इस संधि के तहत 500 से 5500 किलोमीटर दूरी की मिसाइलों को तैनात करने पर रोक लगी थी। रूस ने अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों और टैरिफ लगाए जाने के बाद यह कदम उठाया।
वहीं, चीन के परमाणु हथियारों के विस्तार ने भी इस विवाद को और बढ़ा दिया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के परमाणु हथियारों की संख्या 2023 में 410 थी, जो 2024 में बढ़कर 500 हो गई। चीन ने इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों के निर्माण पर भी जोर दिया है, जिससे अमेरिका की चिंता और बढ़ गई है।
अमेरिका की बदलती रणनीति
अमेरिका ने 2024 में अपनी न्यूक्लियर एंप्लॉयमेंट गाइडेंस में बदलाव किया, जिसमें रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ संभावित परमाणु युद्ध की तैयारी को शामिल किया गया। अमेरिका का यह कदम चीन को चिंता में डाल रहा है और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाने का कारण बन रहा है। अमेरिका की इस कड़े रुख के कारण चीन ने वार्ता से इंकार कर दिया है, जिससे वैश्विक परमाणु शांति प्रयासों को बड़ा झटका लगा है।
चीन और रूस की बढ़ती साझेदारी
चीन और रूस की सैन्य और रणनीतिक साझेदारी भी अमेरिका के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। दोनों देशों ने कई बार संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं, जिनमें जुलाई 2025 में जापान सागर में हुई तीनों देशों की जॉइंट नेवी प्रैक्टिस भी शामिल है। इस साझेदारी से यह आशंका है कि चीन और रूस अपने परमाणु हथियार नियंत्रण नीतियों को और अधिक मजबूत कर सकते हैं, जो अमेरिका के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
निष्कर्ष
चीन का परमाणु अप्रसार वार्ता से इनकार वैश्विक सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। अमेरिका और रूस के बीच पहले से तनाव के बीच चीन की इस ठोस रुख ने वैश्विक परमाणु नियंत्रण प्रयासों को ठंडा कर दिया है। इससे भारत समेत अन्य देशों के लिए भी सुरक्षा और रणनीतिक चुनौतियां बढ़ेंगी। आने वाले समय में इस विवाद का समाधान कैसे निकलेगा, यह वैश्विक राजनीति के लिए अहम रहेगा।